श्री हनुमान जी विद्वान् , गुणी व बहुत चतुर थे l आज के कठिन समय में श्री हनुमान जी का चरित्र हमें जीवन जीने की कला सिखाता है l जब हनुमान जी माँ सीता की खोज में लंका जा रहे थे l समुद्र पार कर रहे थे l मैनाक पर्वत ने उनसे कुछ देर विश्राम करने को कहा l हनुमान जी ने उसको अस्वीकार नहीं किया , केवल स्पर्श किया l स्वर्ण पर्वत मैनाक सुख - समृद्धि का प्रतीक है l हनुमान जी ने सुख - समृद्धि को ठुकराया नहीं , लेकिन उनका ध्यान अपने लक्ष्य पर , अपने उद्देश्य पर था इसलिए वे उसका स्पर्श कर आगे बढ़ गए l इसका अर्थ यही है कि कितना भी सुख - वैभव हमारे पास आ जाये , हमें उसका विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग करना चाहिए , उसमे लिप्त होकर अपने उद्देश्य से भटकना नहीं चाहिए l श्री हनुमान जी ने अपने आचरण से यह बताया कि हमें अपना ध्यान लक्ष्य पर केंद्रित रखना चाहिए l अनेक लोग ईर्ष्या - द्वेष के कारण अपनी पूरी ऊर्जा दूसरों की निंदा करने और उनसे लड़ने , उनके विरुद्ध षड्यंत्र करने में बर्बाद कर देते हैं l हनुमान जी को अपने मार्ग में सिंहिका नाम की राक्षसी मिलती है , जिसे उन्होने मार डाला क्योंकि वह ईर्ष्या का प्रतीक थी , वह उड़ते हुए लोगों की परछाई पकड़ कर खा जाती थी l
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