पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " शक्ति और सामर्थ्य का प्रयोग अहंकार और दंभ प्रदर्शन के लिए नहीं होना चाहिए , बल्कि इसका नियोजन मानवता के कल्याण और विकास के लिए करना चाहिए l सामर्थ्य के संग जब अहंकार जुड़ता है , तो विनाश होता है और जब सामर्थ्य के संग संवेदना जुड़ती है , तो विकास होता है l " आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- " सामर्थ्य और शक्ति का प्रयोग तो समान व्यक्ति के विरुद्ध होना चाहिए , और वह भी मूल्यों की रक्षा के लिए l " महाभारत में जब अर्जुन ने देखा कि उसे अपने ही भाइयों , पितामह , गुरु आदि से युद्ध करना होगा तो वह विषादग्रस्त हो गया , उसने अपना गांडीव नीचे रख दिया तब भगवान कृष्ण ने उसे गीता का उपदेश दिया , भगवान ने कहा ---- वे लोग अधर्म और अन्याय के पक्ष में हैं , अत्याचारी हैं l यदि अत्याचार और अन्याय को हम नहीं मिटायेंगे तो वे हमें मिटा देंगे l इस संसार में सुख - शांति के लिए असुरता को मिटाना अनिवार्य है , इसलिए तुम शस्त्र उठाओ और युद्ध करो l
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