आचार्य श्री लिखते हैं --- ' ईश्वर का आक्रोश तब उभरता है जब अनाचारी अपनी गतिविधियां छोड़ते नहीं और पीड़ित व्यक्ति कायरता , भीरुता अपनाकर उसे रोकने के लिए कटिबद्ध नहीं होते l संसार में अनाचार का अस्तित्व तो है , पर उसके साथ ही यह विधान भी है कि सताए जाने वाले बिना हार - जीत का विचार किए प्रतिकार के लिए , प्रतिरोध के लिए तैयार तो रहें l दया , क्षमा आदि के नाम पर अनीति को बढ़ावा देते चलना सदा से अवांछनीय समझा जाता है l अनीति के प्रतिकार को मानवीय गरिमा के साथ जोड़ा जाता रहा है l
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