एक पौराणिक गाथा है ----- सीता हरण के उपरांत जब रावण को परास्त करने का प्रश्न आया तो राम के द्वारा भेजा गया निमंत्रण उन दिनों के राजाओं और संबंधियों तक ने अस्वीकृत कर दिया था l उन्हें लगा कि राम तो वनवासी हैं , उनके पास कोई सेना नहीं है और रावण बहुत शक्तिशाली है , इसलिए झंझट में न पढ़कर कन्नी काट गए l लेकिन जहाँ अत्याचार और अन्याय के उन्मूलन का प्रश्न होता है , वहां दिव्य शक्तियां मदद करती हैं l रीछ और वानरों की विशाल सेना तैयार हो गई जो उत्साह , साहस और प्राणशक्ति से ओत - प्रोत थी l इसी तरह इस युग में जब छत्रपति महाराज शिवाजी अपने सैन्यबल को देखते हुए असमंजस में थे , तो समर्थ गुरु रामदास ने उन्हें भवानी के हाथों अक्षय तलवार दिलाई थी और कहा था ------ " तुम छत्रपति हो गए , पराजय की बात ही मत सोचो l " पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं ---- " युग सृजन में श्रेय किन्ही को भी मिले , पर उसके पीछे वास्तविक शक्ति उस ईश्वरीय सत्ता की ही होगी l युग सृजन महाकाल की योजना है l "
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