कहते हैं --- जो कुछ महाभारत में है , वही इस धरती पर है l इसके विभिन्न प्रसंग हमें शिक्षा देते हैं , जीवन जीना सिखाते हैं ------- महाभारत का एक पात्र है ----' अश्वत्थामा ' l जब महाभारत के युद्ध में दुर्योधन भी पराजित हो गया , वह घायल अवस्था में पड़ा था , उसे इस बात का दुःख था कि पांचों पांडवों में से वह किसी को नहीं मार सका l तब उसने कूटनीतिक चाल चली और शिविर में सोते हुए पांचों पांडवों को मरने चला l उस समय उस स्थान पर द्रोपदी के पांच अबोध शिशु सो रहे थे l क्रोध में उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई , उसने उन पांचों बच्चों का गला काट दिया और दुर्योधन के पास पहुंचा l दुर्योधन ने उससे भीम का सिर माँगा l सिर को अपने हाथ में लेते ही वह चौंक गया , इतना कोमल और नाजुक l दुर्योधन क्षत्रिय था , वीर था , उसको अपने जीवन के आखिरी पल में बहुत दुःख हुआ , उसने कहा --- अश्वत्थामा तुमने यह घोर पाप किया , निर्दोष बच्चों की हत्या कर दी ! पांडवों को जब इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने अश्वत्थामा को पकड़ कर द्रोपदी के सामने पेश किया कि इस घोर पाप के लिए इसे जैसा कहो वह दंड थे , लेकिन द्रोपदी को दया आ गई , और कहा जैसे मैं दुःखी हूँ , गुरु माता को भी दुःख होगा , इसे छोड़ दो l सोते हुए निर्दोष बालकों की हत्या का घृणित कृत्य कर के भी उसे क्षमा मिल गई , इससे वो सुधरा नहीं बल्कि और पाप करने की उसकी हिम्मत खुल गई l अब उसने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ को निशाना बनाया , ताकि पांडवों का वंश ही समाप्त हो जाये l गर्भस्थ शिशु की रक्षा तो भगवान कृष्ण ने की , लेकिन फिर उन्होंने अश्वत्थामा को क्षमा नहीं किया l मृत्यु दंड तो कम था , भगवान कृष्ण ने भीम से कहा -- अश्वत्थामा के मस्तक पर जो मणि है उसे निकाल दो , इससे वहां घाव हो जायेगा जो हमेशा रिसता रहेगा , उससे बुरी बदबू आएगी , मणिहीन होकर हजारों वर्षों तक ये ऐसे ही भटकता रहेगा l पूर्वज कहा करते थे -- यदि कभी अचानक तेज बदबू आये तो समझो वहां से अश्वत्थामा निकला है l ----- महाभारत का यह प्रसंग शिक्षा देता है कि कभी किसी निर्दोष प्राणी की हत्या नहीं करनी चाहिए , संसार की अदालत से तो व्यक्ति बच जाता है लेकिन प्रकृति में क्षमा का प्रावधान नहीं होता l
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