श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान कहते हैं ----- " गुणों और कर्मों के आधार पर चार वर्णों ---ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र की रचना मेरे द्वारा ही की गई है l यह विभाजन जाति के आधार पर नहीं है l जिन्हे ज्ञान की ललक है , परमात्म ज्ञान को जन - जन तक पहुँचाना चाहते हैं , वे ब्राह्मण हैं l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने मनुस्मृति का हवाला देते हुए कहा है कि जन्म से तो सभी शूद्र होते हैं , पर संस्कारों से ब्राह्मण बनते हैं l तीन श्रेणियाँ हैं ब्राह्मण बनने की l श्रम करेंगे तो धन आएगा , समाज के हर अंग तक पहुँचाया जायेगा , यह वैश्य का धर्म है l प्रभाव में वृद्धि हुई , सामर्थ्य बड़ी तो समाज के विभिन्न अंगों की रक्षा की ताकत भी आ गई l यह वर्ग क्षत्रिय कहलाएगा l इसके बाद जब सांसारिकता से ऊपर उठ जाते हैं और ज्ञान पाने की महत्वाकांक्षा बढ़ने लगती है ब्राह्मण कहलाते हैं l वे कहते हैं --- ब्राह्मणत्व एक साधना है , जिसका राजमार्ग श्रम की साधना से आरम्भ होता है और पराकाष्ठा तक पहुँचने पर ज्ञान की प्राप्ति होने तक चलता चला जाता है l
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