श्री महादेव गोविन्द रानाडे के जीवन का एक प्रसंग है ---- जिन दिनों वे बम्बई के एलफिंस्टन कॉलेज में पढ़ते थे , वहां के प्रिंसिपल श्री ग्रांट ने ' अंग्रेजी और मराठा शासन की तुलना ' पर एक निबंध लिखने को कहा l अन्य सब लोगों ने तो उस समय की हवा के अनुसार अंग्रेजी राज्य की अच्छाइयों का ही गुणगान किया , पर रानाडे उस श्रेणी से बहुत ऊपर थे l उन्होंने अनेक प्रमाण देकर यह प्रमाणित किया कि मराठों का शासन अधिक प्रशंसनीय था l इस पर ग्रांट साहब बहुत नाराज हुए और रानाडे को बुलाकर कहा --- ---' तुम्हे उस सरकार की निंदा नहीं करनी चाहिए जो तुम्हे शिक्षित कर रही है और तुम्हारी जाति के साथ इतना उपकार कर रही है l " ग्रांट साहब बहुत सज्जन और विद्वान् थे लेकिन इस घटना से वे इतने नाराज हुए कि उन्होंने छः महीने के लिए रानाडे की छात्रवृत्ति बंद कर दी l रानाडे ने भी इस हानि को सहन करना स्वीकार कर लिया पर वे अपने विचारों को बदलने के लिए तैयार न हुए l हानि होने पर भी वे अपने सिद्धांत पर दृढ़ रहे , इसी गुण ने और ऐसे ही अनेक गुणों ने उन्हें महान बनाया l
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