गुणी की विशेषताएं प्रकट होते देर नहीं लगती l वीर शिवाजी के गुणों और योग्यताओं के विषय में सुनकर बीजापुर का सुल्तान आदिलशाह उन्हें देखने के लिए उत्सुक था l उसने उनके पिता शाहजी से उन्हें दरबार में लाने के लिए कहा l शाहजी ने उन्हें दरबार में चलने की आज्ञा दी l शिवाजी स्वाभिमानी थे , उन्होंने इस अनुचित आज्ञा को मानने से इनकार कर दिया l शाहजी और मुरार पंत ने शिवाजी को समझाया ---' दरबार में चलने से बड़ा लाभ होगा , बादशाह खुश हो जायेगा तो ख़िताब और ओहदा देगा , जागीर बख्शेगा l अपने बड़े लाभ के लिए बादशाह को एक बार सलाम कर लेने में क्या हर्ज है ? ' मुरार पंत की बात सुनकर किशोर शिवा बड़ी देर तक उनका मुंह देखते रहे फिर बोले -- " देश और धर्म पर होते अत्याचार पर दृष्टिपात न कर केवल अपने स्वार्थ की और देखते रहना अमानवीय प्रवृति है , जो स्वाभिमानी आदमी को शोभा नहीं देती ये बादशाह रोटी के टुकड़ों की तरह जागीरें सामने डालकर स्वानवृत्ति जगाते और भाई से भाई का गला कटवाते हैं l दुनिया में हेय तथा हीन बनकर काम नहीं चलता l यह तो मनुष्यों की अपनी कमजोरी और सोचने का ढंग है कि अन्यायियों के तलवे चाटने से ही काम चलता है l ईश्वर ऐसे अत्याचारी लोगों को सत्तावन देखने की इच्छा नहीं कर सकता l '
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