प्रसिद्ध मानवतावादी विद्वान रोमारोलाँ ने लिखा है ---- ' लेनिन वर्तमान शताब्दी के सबसे कर्मठ और साथ ही स्वार्थ त्यागी व्यक्ति थे l उनने आजीवन घोर परिश्रम किया पर अपने लिए कभी किसी प्रकार के लाभ की इच्छा नहीं की l ' लेनिन 17 वर्ष की अवस्था में ही जन क्रांति के महत्त्व और शक्ति को समझते थे l वे जारशाही के तो दुश्मन थे लेकिन वे कहते थे ---' षड्यंत्र और गुप्त हत्याओं का मार्ग सही नहीं है , हम इस पर चलकर सफलता नहीं पा सकते l जब उन्हें जारशाही ने साइबेरिया में निष्कासित कर दिया तो वे शुसेनिस्क नमक गाँव में नजरबंदी का जीवन बिताना पड़ा l वहां के कष्ट और कठिनाइयों के कारण कितने ही कैदी पागल हो जाते थे , भूखों रहकर मर जाते थे लेकिन लेनिन मनस्वी और कर्मठ थे , उन्होंने समय का सदुपयोग किया , वहां के किसानों , मजदूरों को मुकदमे आदि के संबंध सलाह देते थे l उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी --' कहाँ से कार्य आरम्भ करें ' l इसे लोग रूस की राज्य क्रांति का प्राइमर कहने लगे थे l
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