इस संसार में अच्छाई और बुराई में , देवता और असुरों में निरंतर संघर्ष रहा है l आसुरी तत्व बड़ी मजबूती से संगठित होते हैं l असुर अपनी सफलता के लिए कठोर तप कर लेते हैं l तप का अर्थ केवल हिमालय पर जाकर तपस्या करना नहीं है , देवत्व को कुचलने के लिए विधिवत योजना बनाना , उसे क्रियान्वित करना भी एक प्रकार का तप है l उनके तप का उद्देश्य विध्वंस करना है l आसुरी तत्व केवल धरती पर ही नहीं हैं , ब्रह्माण्ड में भी सकारात्मक और नकारात्मक तरंगे हैं l जब धरती पर असुरता बढ़ती है तो नकारात्मक शक्तियां उनकी मदद करती हैं l इतिहास में ऐसे प्रमाण हैं कि जिन्होंने भयंकर नरसंहार किए उन पर कोई डेविल दुष्ट आत्मा थी l युग चाहे कोई भी हो आसुरी तत्व अपने कुत्सित प्रयासों से देवत्व को कमजोर बनाने का निरंतर प्रयास करते हैं , युद्ध या क्रांति उसका आखिरी पड़ाव होता है l ---- महाभारत का प्रसंग है ---- युधिष्ठिर सब भाइयों में बड़े थे , धर्मराज थे , सत्यवादी थे l आसुरी तत्व अपने अस्तित्व के लिए क्रियाशील हो गए l महाराज पाण्डु शिकार के लिए गए थे , नकारात्मक तत्व उन पर हावी हो गए और उनका छोड़ा हुआ तीर उस हिरण को लगा जो उस वक्त अपनी हिरणी के साथ था l मरते हुए हिरण ने उन्हें शाप दिया कि इसी तरह जब तुम अपनी पत्नी के सामीप्य होंगे तो तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी l इस शाप की वजह से उनमे निराशा आ गई और वे राजमुकुट धृतराष्ट्र को सौंपकर वन में चले गए महाराज पाण्डु की दो पत्नी थीं --कुंती और माद्री l एक दिन एकांत और माद्री के सौंदर्य में महाराज पाण्डु उस शाप को भूल गए और माद्री के निकट आते ही शाप के प्रभाव से उनकी मृत्यु हो गई l बस ! यहीं से आसुरी तत्व शक्तिशाली हो गए l पिता का आश्रय नहीं रहा , पांडवों को वन में भटकना पड़ा , निरंतर कौरवों से मिलने वाले अपमान और षड्यंत्र का सामना करना पड़ा l ---- आसुरी शक्तियों के ये ही हथियार हैं , युग के अनुरूप उनके प्रयोग करने के तरीके बदल जाते हैं l आसुरी तत्व अपने अस्तित्व को बचाने के लिए क्रमबद्ध तरीके से इसी तरह किसी समाज या राष्ट्र को कमजोर करते हैं , अपने कुत्सित प्रयासों से लोगों का आश्रय छीन कर उन्हें दर -दर भटकने को मजबूर कर देते हैं , उनकी आंतरिक और बाह्य शक्ति को विभिन्न तरीकों से क्षीण कर के उन्हें इतना कमजोर कर देते हैं कि वे उनके षड्यंत्र को समझ ही न सकें l आश्रयहीन होने के बावजूद पांडव इसलिए विजयी हुए क्योंकि वे संगठित थे , उनमें मतभेद नहीं था , परस्पर सम्मान था l वे सन्मार्ग पर चले इसलिए उन्हें दैवी शक्तियों की मदद मिली , उनमे निराशा और भय नहीं था इसलिए अपने विरुद्ध रचे जाने वाले षड्यंत्र को समझ सके और विजयी हुए l
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