स्वस्थ रहने के लिए जरुरी है कि हमारा पर्यावरण शुद्ध हो , स्वस्थ हो लेकिन अच्छे स्वास्थ्य के साथ हमारा जीवन तनाव रहित और शांतिपूर्ण हो , जीवन में आनंद हो , इसके लिए जरुरी है कि वह पर्यावरण भी पवित्र हो जो हमारे मन , हमारे विचार और हमारे क्रिया - कलाप से उठने वाली तरंगों से बनता है l यदि मनुष्य अपने स्वाद के लिए मूक प्राणियों का वध करता है , धन के लालच में मजबूर लोगों के अंग बेचता है , अपनी मानसिक विकृतियों को पूरा करने के लिए बच्चों पर अत्याचार करता है , अपनी ताकत के बल पर कमजोर को सताता है तो उन सबके मन से उठने वाली आहें , चीत्कार से पूरा वातावरण नकारात्मक हो जाता है l यही नकारात्मकता लोगों का सुख - चैन छीन लेती है l पाप करने वाला , ऐसे जघन्य कार्य कराने वाला और उसे देखकर भी अनदेखा करने वाला , सभी पर प्रकृति का दंड विधान लागू होता है l गेंहू के साथ घुन भी पिसता है , इसलिए प्रकृति सामूहिक दंड भी देती है l ईश्वर ने मनुष्य को चयन की स्वतंत्रता दी है ---- सन्मार्ग पर चलकर सुख - शांति का जीवन जिएं , अपनी चेतना के स्तर को ऊँचा उठाएं या गलत मार्ग पर चलकर पशु और राक्षस से भी बदतर श्रेणी में चले जाएँ l हम सद्बुद्धि के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें , जिससे हम सही दिशा का चुनाव कर सकें l
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