वाराणसी के शासक ब्रह्मदत्त का राजोद्यान देश - देशांतर के दुर्लभ एवं सुन्दर वृक्षों , लताओं का संग्रह था बोधिसत्त्व उसी उद्यान में सपरिषद विश्राम कर रहे थे l उस दिन नगर में एक भव्य उत्सव आयोजित था l बाग़ के मालिक को उत्सव देखने की लालसा थी l उद्यान में बंदरों का एक समूह था l बंदरों के नायक से माली की मैत्री थी l उसने नायक बन्दर को बुलाकर कहा --- " मित्र ! एक दिन तुम अपने समूह के साथ मिलकर उद्यान सींच दो तो मैं उत्सव देख आऊं l " बन्दर ने प्रसन्नता से कार्य करने का वचन दिया l माली चला गया तो नायक ने बंदरों से कहा ---" मित्रों , हमें विवेकपूर्ण सिंचन करना चाहिए , अन्यथा जल का अभाव हो जायेगा , तुम लोग पहले लताओं को उखाड़कर उनकी जड़ों की गहराई देख लो l जो जड़ जितनी गहरी हो , उसके अनुसार ही सिंचन करो l ' बंदरों ने शीघ्र ही लताएं उखाड़ डालीं l माली जब वापस आया तो उसने सिर पीट लिया और समझ गया कि मुर्ख से दोस्ती कितनी हानिकारक है l ऐसी ही एक लघु कथा है ----- एक राजा ने बन्दर से दोस्ती की l राजा जब दोपहर को कुछ देर सोता था तब वह बन्दर उसे पंखा झलता था l एक दिन राजा को गहरी नींद आ गई l बन्दर पंखा झलने लगा l अचानक राजा की नाक पर एक मक्खी आकर बैठ गई l बन्दर पंखा झलकर मक्खी को भगाने की कोशिश करने लगा l मक्खी बार - बार उड़ती और फिर राजा की नाक पर बैठ जाती l बन्दर को बहुत गुस्सा आई l वहीँ पास में राजा की तलवार रखी थी , उसने वह तलवार उठा ली और मन ही मन कहने लगा , -बैठने दो , मक्खी को , अब मैं देखूंगा l जैसे ही मक्खी राजा की नाक पर बैठी बन्दर ने तलवार से वार किया , मक्खी तो उड़ गई , [पर राजा लहूलुहान हो गया l इस कथा से हमें यही शिक्षा मिलती है कि कभी भी किसी मूर्ख से मित्रता नहीं करनी चाहिए l
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