पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " शत्रु को आधा कुचलकर छोड़ देने से वह प्राय: प्रतिशोध की ताक में रहता है और फिर से तैयार होकर आक्रमण कर सकता है l आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- " दुष्ट शत्रु पर दया दिखाना अपना और दूसरों का अहित करना है l आजकल के व्यवहार शास्त्र का स्पष्ट नियम है कि दूसरों को सताने वाले दुष्ट जन पर दया करना , सज्जनों को दंड देने के समान है क्योंकि दुष्ट तो अपनी स्वभावगत क्रूरता और नीचता को छोड़ नहीं सकता , वह जब तक स्वतंत्र रहेगा और उसमें शक्ति रहेगी , वह निर्दोष व्यक्तियों को सब तरह से दुःख और कष्ट ही देगा l
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