सोमनाथ लूटकर महमूद गजनवी लौट रहा था तो मार्ग में राजपूतों की एक टुकड़ी से मुकाबला करना पड़ा l उसकी विशाल सेना के सामने मात्र सौ -सवा सौ रणबाँकुरे खड़े थे l गजनवी हँस पड़ा , बोला ---- " इन बेवकूफों को समझाओ l क्यों जान देते हो l " घुड़सवारों का नेतृत्व एक अस्सी साल के वृद्ध कर रहे थे l वे बोले --- " बादशाह ! हम राजपूत मृत्यु से कभी नहीं डरते l हमारी निगाह में तुम एक लुटेरे हो l भारत विजेता कहकर हमारा अपमान न करो l जब तक इस धरती पर एक भी राजपूत जीवित है , तब तक भारत विजय का स्वप्न भी मत देखना l " युद्ध छिड़ गया l उस छोटे से समूह ने वह कौशल दिखाया कि एक - एक ने दस - दस को मार गिराया l गजनवी की सेना को पसीना आ गया l पर वे कब तक टिकते l सभी वीरगति को प्राप्त हुए l महमूद गजनवी अपने सेनापति से बोलै ---- " तुम ठीक कहते हो l इस देश में बल से कुछ प्राप्त नहीं किया जा सकता l इसे मात्र छल से ही हराया जा सकता है l गजब के हैं ये लोग l " हमारी आपसी फूट और जागरूकता की कमी ने ही देश को युगों की गुलामी दी ------
No comments:
Post a Comment