श्रीमद्भगवद्गीता के महान व्याख्याकार लोकमान्य तिलक ने गीता के एक श्लोक की अनुभूति की , श्लोक में भगवान कहते हैं ---- जिस प्रकार एक ही सूर्य , सम्पूर्ण लोकों को प्रकाशित करता है , उसी प्रकार एक ही आत्मा , सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करती है l तिलक इस श्लोक पर विचार कर रहे थे , उन्होंने अपनी मन: स्थिति बताते हुए एक स्थान पर लिखा है ------- वर्षा के दिन थे , एक सुबह रास्ते से निकलते समय उन्होंने देखा रास्ते के किनारे जगह - जगह गड्ढे बन गए हैं , इन गड्ढों में पानी भर गया था , कुछ गड्ढे बड़े थे , कुछ छोटे थे , सब में पानी भरा था , कुछ में जानवर नहा रहे थे कुछ खाली थे l सुबह का समय था , उस समय जो दृश्य था उसने मुझे नई अनुभूति प्रदान की l तिलक लिखते हैं --- मैंने देखा सूरज एक है , गंदे गड्ढे में भी उसी का प्रतिबिम्ब है और स्वच्छ जल में भी , दोनों में कोई अंतर नहीं है l गंदगी जल में है लेकिन प्रतिबिम्ब वैसा ही निर्दोष और पवित्र है , फिर यह एक सूर्य समूची धरती पर कितने ही सरोवरों आदि में प्रकाशित होगा l एक ही सूर्य सारे संसार को प्रकाशित करता है l " सूर्य एक है , एक ही गगन है , प्रकाश एक है , मनुष्य ने अपने स्वार्थ और अहंकार के कारण ही ऊंच - नीच , बड़े - छोटे तथा जाति व धर्म के आधार पर भेदभाव किए हैं l
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