5 August 2021

WISDOM-------

      श्रीमद्भगवद्गीता  के   महान   व्याख्याकार  लोकमान्य  तिलक   ने   गीता  के  एक  श्लोक  की  अनुभूति  की  , श्लोक  में  भगवान  कहते  हैं  ---- जिस  प्रकार  एक  ही  सूर्य  , सम्पूर्ण  लोकों  को  प्रकाशित  करता  है  ,  उसी  प्रकार  एक  ही  आत्मा  ,  सम्पूर्ण  क्षेत्र  को  प्रकाशित  करती  है   l   तिलक  इस  श्लोक  पर  विचार  कर  रहे  थे  ,  उन्होंने  अपनी  मन: स्थिति  बताते  हुए  एक  स्थान   पर लिखा  है  -------   वर्षा  के  दिन  थे   ,   एक  सुबह  रास्ते  से  निकलते  समय   उन्होंने  देखा   रास्ते  के  किनारे   जगह - जगह  गड्ढे   बन  गए  हैं  ,  इन  गड्ढों   में  पानी  भर  गया  था  ,  कुछ  गड्ढे  बड़े  थे  ,  कुछ  छोटे  थे  ,  सब  में  पानी  भरा  था  ,  कुछ  में  जानवर   नहा    रहे  थे  कुछ  खाली  थे   l   सुबह  का  समय  था  ,  उस  समय  जो  दृश्य  था    उसने  मुझे  नई   अनुभूति  प्रदान  की   l   तिलक  लिखते  हैं --- मैंने  देखा  सूरज  एक  है  ,  गंदे  गड्ढे  में  भी  उसी  का  प्रतिबिम्ब  है   और  स्वच्छ  जल  में  भी  ,  दोनों  में  कोई  अंतर  नहीं  है   l   गंदगी  जल  में  है  लेकिन  प्रतिबिम्ब  वैसा  ही  निर्दोष  और  पवित्र  है  ,  फिर   यह  एक  सूर्य    समूची  धरती  पर  कितने  ही  सरोवरों  आदि  में  प्रकाशित  होगा   l   एक  ही  सूर्य  सारे  संसार  को  प्रकाशित  करता  है  l   "             सूर्य  एक  है ,  एक  ही  गगन   है  , प्रकाश  एक  है  ,    मनुष्य  ने  अपने  स्वार्थ  और  अहंकार  के  कारण    ही  ऊंच - नीच   ,  बड़े - छोटे  तथा  जाति   व  धर्म  के  आधार  पर  भेदभाव  किए   हैं  l 

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