श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते हैं कि संसार में समस्त जीव मेरे ही अंश है लेकिन अपनी इन्द्रियों के आकर्षण में वे इस सत्य को भूल गए हैं l ' यह सत्य है कि यदि हम विश्वास करें की हम ईश्वर के अंश हैं , उनसे हमारा निकट का रिश्ता है तो हमारे क्रिया - कलाप श्रेष्ठ होंगे , हम सन्मार्ग का ही चयन करेंगे l लेकिन यदि लोग यह समझेंगे कि हम पहले जंगली थे , हमारे पूर्वज बन्दर थे तो लोगों के क्रिया - कलाप ऐसे ही होंगे कि सब तरफ कोहराम मचा रहे l इस सत्य को समझाने वाली एक कथा है ------- एक सिंहनी गर्भवती थी , वह शिकार को निकली तभी एक शिकारी ने उस पर तीर चला दिया l सिंहनी की तो मृत्यु हो गई लेकिन उसने मरने से पहले एक शावक को जन्म दे दिया l बिन माँ के उस शावक को वन में भटकते देख हिरनों के एक झुण्ड को उस पर दया आ गई और उन्होंने उसे अपने झुण्ड में सम्मिलित कर लिया l हिरनों के साथ पलते - खेलते वह शावक भूल ही गया कि वह सिंह है l जैसा हिरन करते , वैसा ही वह करता l एक दिन एक व्यस्क सिंह उस कोने में पहुंचा , जहाँ यह हिरनों का झुण्ड रहता था l उसको देख सारे हिरन भाग गए , वह सिंह शावक भी उनके संग भागा l उस व्यस्क सिंह के यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ l उसने हिरनों को छोड़कर उस सिंह शावक को पकड़ा और पूछा कि वह क्यों भाग रहा है ? वह डरते - घबराते बोला कि वह तो हिरन है l व्यस्क सिंह को यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि सिंह शावक स्वयं को हिरन कह रहा है l उसके भ्रम को दूर करने के लिए वह उसे नदी के किनारे ले गया और कहा ---' पानी में झांक कर देख तुझमें और मुझमें क्या अंतर् है ? ' पानी में अपनी परछाई देखते ही उसे समझ आ गई कि वह एक सिंह है , उसकी दहाड़ वापस आ गई l सम्पूर्ण मानव जाति यह स्मरण रखे कि वह परमात्मा का अंश है
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