पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- "कायरता मनुष्य का बहुत बड़ा कलंक है l कायर व्यक्ति ही संसार में अन्याय , अत्याचार तथा अनीति को आमंत्रित किया करते हैं l संसार के समस्त उत्पीड़न का उत्तरदायित्व कायरों पर है l " जब महाभारत में सात महारथियों ने मिलकर अभिमन्यु का वध किया था , यह कायरता का बीज कलियुग में आते - आते एक विशाल घना वृक्ष बन गया l चाहें छोटे स्तर पर देखें या राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखें , हर तरफ एक ही नजारा है , हर ताकतवर अपने से कमजोर पर अत्याचार करता है , उसको मिटा देना चाहता है l अपने से शक्तिशाली से तो लड़ने की हिम्मत नहीं होती , इसलिए कमजोर को ही उत्पीड़ित कर ऐसे लोग अपने अहंकार को पोषित करते हैं l इसे मानव जाति का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि इतने विकास के बाद भी मनुष्य अंदर से टूटा और भयभीत है इसलिए वह लाशों पर राज करना चाहता है l ये लाशें चाहें घातक हथियारों से मिटटी में मिल गई हों या चलती - फिरती हों , जिनकी हर तरह के प्रदूषण के कारण चेतना ही मृत हो गई है l अहंकारी यदि एक पल को भी यह विचार कर ले कि वह अमर नहीं है , अपनी मृत्यु को याद करे तो संभव है कि उसकी चेतना जाग जाये l सूफी फकीर शेख सादी के वचन हैं ------- " बहुत समय पहले दज़ला के किनारे एक मुरदे की खोपड़ी ने कुछ बातें एक राहगीर से कही थीं l वह बोली थी ----- ' ऐ मुसाफिर , जरा होश में चल l मैं भी कभी भारी दबदबा रखती थी l मेरे सिर पर हीरों जड़ा ताज था l फतह मेरे पीछे - पीछे चली और मेरे पांव कभी जमीन पर न पड़ते थे l होश ही न था l एक दिन सब कुछ खत्म हो गया l कीड़े मुझे खा गए और आज हर पाँव मुझे बेरहम ठोकर मारकर आगे निकल जाता है l तू भी अपने कानों से गफलत की रुई निकाल ले , ताकि तुझे मुरदों की आवाज से उठने वाली नसीहत हासिल हो सके l "
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