पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " बुद्धि एक महान ईश्वरीय विभूति है , इस विभूति का सदुपयोग जरुरी है l वे कहते हैं ----' हम उत्कृष्ट बुद्धिवादी बने l परम्परागत बुद्धिवाद छोटे - मोटे भेद , रूढ़िग्रस्त धार्मिकता के कारण ही भयानक नर - संहार करता है , लोगों को तलवार के घाट उतार देता है लेकिन उत्कृष्ट बुद्धिवादी विकास पथ का यात्री है , वह घोषणा करता है कि विश्व में शांति का मार्ग भेद फ़ैलाने में नहीं ,-- मेल कराने में है l लाखों वर्षों से हम सब एक दूसरे के दोष देखते रहे , भेदों को बढ़ाते रहे , द्वेष को फैलाते रहे l हमने कभी भी यह नहीं सोचा कि हम में समता अधिक बातों में है और भेद कम विषयों में है l किन्तु हम भेदों पर ही जोर देते रहे l विभिन्न धर्मों में आपस में समानताएं बहुत हैं , भेद जरा सा है l किन्तु इन नगण्य से भेदों के कारण ही भयंकर खून - खराबा हुआ l उत्कृष्ट बुद्धिवादी कहता है भेद को दूर भगाइये और परस्पर मेल के प्रसंग तलाश करिए और उन पर मिलकर काम कीजिए l नवीन युग की नवीन समस्याएं हैं , उनका हल भी नए ढंग से सोचना चाहिए l उत्कृष्ट बुद्धिवादी संत सुकरात और महान वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन की तरह अपना हृदय प्रकाश के लिए सदा खुला रखता है l उनमे अहंकार नहीं था l एक व्यक्ति ने महान वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन से कहा ----- " लगता है आपने तो पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है l " तब उन्होंने उत्तर दिया ---- " मेरे सामने ज्ञान का अथाह समुद्र फैला हुआ है , जिसके किनारे बैठकर कुछ ही घोंघे और सीपियाँ उठा पाया हूँ l " ऐसे विनयशील स्वभाव के उत्कृष्ट बुद्धिवादी अपने पीछे आने वाले हर यात्री के प्रति सहानुभूति रखता है l न उस पर रौब दिखाता है और न अपना अहंकार प्रकट करता है l " आज इस बात पर चिंतन - मनन करना जरुरी है कि हमने इतनी वैज्ञानिक प्रगति विकास के लिए की है या मानवता के विनाश के लिए ?
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