लघु -कथा ----- मधुमक्खी कोमल पुष्प की छाती पर बैठी उसका जीवनरस चूस रही थी l फूल कराहते हुए बोला --- " इस तरह मुझे मत चूसो l मैं भी जीना चाहता हूँ l ' मधुमक्खी पर कोई असर नहीं पड़ा l वह अपना आनंद लेती रही l फूल कराहता रहा l एक दिन मधु की गंध पाकर भालू पेड़ पर चढ़ गया और उसने शहद पीकर छत्ते के टुकड़े - टुकड़े कर दिए l मधुमक्खी भिनभिनाकर अपना गुस्सा निकालती रही , पर भालू को उससे क्या मतलब था l मुरझा रहे फुल ने मधुमक्खी की स्थिति देखकर कहा ----- ' काश ! यदि हम सब एक दूसरे के कष्ट को समझ सके होते , तो इस दुनिया में चारों ओर सुन्दरता होती l ' मधुमक्खी भी प्रायश्चित भाव से यही कह रही थी l
2 . बूढा आदमी पेड़ के समीप आकर रुका और बोला --- ' अरे ! फल नहीं सो नहीं l और फूल भी नहीं , पत्ते भी नहीं ! क्या हो गया ? बसंत में तुम्हारी बहार देखते ही बनती थी l पेड़ ने लम्बी आह भरी --- काश ! तुमने अपना झुर्री भरा चेहरा देख लिया होता l बसंत ऋतू तो सदा आती - जाती रहेगी पर बूढी पीढ़ी और प्रथा -परंपरा को अपना दायित्व पूरा करते हुए नयों के लिए भी तो स्थान खाली करना चाहिए , अन्यथा यह स्रष्टि ही बूढी होकर समाप्त हो जाएगी l " बात बूढ़े को समझ में आ गई l
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