लघु - कथा ----- तीन व्यक्ति पहाड़ी मार्ग पार कर रहे थे l चोटी काफी उंचाई पर थी , रास्ता लंबा था l धूप और थकान से उनका मुंह सूखने लगा l प्यास से व्याकुल उन्होंने चारों ओर देखा l एक झरना दूर नीचे की ओर बह रहा था l एक पथिक ने आवाज लगाईं --- " हे ईश्वर ! सहायता कर l हम तक पानी पहुंचा l दूसरे पथिक ने आवाज लगाईं --- " हे इंद्र ! मेघमाला ला और जल्दी से जल्दी जल बरसा l हमारी प्यास बुझा l " तीसरे ने कुछ नहीं कहा , वहां से नीचे उतर कर झरने तक पहुंचा और जी भरकर प्यास बुझाई l दो प्यासे अभी भी सहायता के लिए चिल्ला रहे थे l पहाड़ियों से प्रतिध्वनि आ रही थी l पर जिसने पुरुषार्थ का सहारा लिया , वह तृप्ति प्राप्त कर फिर आगे बढ़ गया l सही कहा है ---- ' दैव - दैव ! आलसी पुकारा l ' आलसी ही हमेशा इस तरह का आचरण कर पुकार लगाते रहते हैं l जीत पुरुषार्थी की ही होती है l
2 . कारूँ को अल्लाह ने बहुत बड़ा खजाना दिया l कहा --- " इस दौलत को नेकी में खर्च करना l " कारूँ दौलत पाकर फूला नहीं समाया l उसने उस दौलत को बेहिसाब उड़ाना आरंभ किया , राग - रंग ऐशो-आराम में नष्ट करने लगा खजाना खरच होने लगा l एक दिन जमीन हिली और कारूँ का मकान मय दौलत के उसमें फंस गया l बची दौलत का थोड़ा ही हिस्सा मिल जाए , यह सोचकर उसने आवाजें लगाईं l कोई भी नहीं आया l खुदा के कहर से उसे निजात नहीं मिली l कारूँ की तरह ही रातोरात अमीर बनने वालों ने इससे एक सीख ली और सोचा कि अल्लाह की मरजी पर अपनी मरजी नहीं रखनी चाहिए l परमात्मा की विभूतियाँ सद उद्देश्यों के लिए हैं l उनका दुरूपयोग विनाशकारी ही होता है l
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