लघु -कथा ---- एक गिद्ध था l उसके माता -पिता अंधे थे l गिद्ध प्रतिदिन अपने साथ -साथ अपने माता -पिता के भोजन की व्यवस्था भी जुटाता था l एक दिन वह किसी बहेलिये के जाल में फंस गया l वह बेहद दुःखी हुआ कि मैं मर जाऊंगा तो माता -पिता का क्या होगा ? वह जोर- जोर से विलाप करने लगा l बहेलिये ने उसके रोने का कारण पूछा तो गिद्ध ने अपनी व्यथा कही l बहेलिया बोला --- " गिद्धों की द्रष्टि तो इतनी तेज होती है कि सौ योजन ऊपर आसमान से भी देख लेती है , लेकिन तू जाल को कैसे नहीं देख पाया ? " गिद्ध बोला ---- " बुद्धि पर जब लोभ का पर्दा पड़ जाता है तो उसे ठीक -ठीक दिखाई नहीं देता l जीवन भर मांस के पिंड के पीछे भागते - भागते मेरी नजर को अब उसके सिवाय कुछ और दिखाई ही नहीं देता l इसी कारण मैं तेरा जाल नहीं देख पाया l " बहेलिये को गिद्ध की ज्ञान भरी बातें अच्छी लगीं l उसने कहा ---- ' गिद्धराज ! जाओ मैं तुम्हे मुक्त करता हूँ l अपने अंधे माता - पिता की सेवा करो l तुमने मुझे लोभ का दुष्परिणाम बता दिया l '
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