पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " चिन्तन और चरित्र यदि निम्न स्तर का है तो उसका प्रतिफल भी दुःखद . संकट ग्रस्त एवं विनाशकारी होगा l उन दुष्परिणामों को कर्ता स्वयं तो भोगता ही है , साथ ही अपने सम्बद्ध परिकर को भी दलदल में घसीट ले जाता है l नाव की तली में छेद हो जाने पर उसमे बैठे सभी यात्री मँझदार में डूबते हैं l स्वार्थी , विलासी और कुकर्मी स्वयं तो आत्म -प्रताड़ना , लोक -निंदा और दैवी दंड विधान की आग में जलता ही है , साथ ही अपने परिवार , संबंधी , मित्रों , स्वजनों को भी अपने जाल - जंजाल में फंसाकर अपनी ही तरह दुर्गति भुगतने के लिए बाधित करता है l इससे समूचा वातावरण विकृत , दुर्गंधित होता है l प्रत्येक व्यक्ति समाज पर अपना भला -बुरा प्रभाव छोड़ता है , किन्तु सुगंध की अपेक्षा दुर्गन्ध का विस्तार अधिक होता है l एक नशेवाला , जुआरी , कुकर्मी , व्यभिचारी अनेकों संगी -साथी बना सकने में सहज सफल हो जाता है लेकिन आदर्शों का , श्रेष्ठता का अनुकरण करने की क्षमता हल्की होती है l पानी नीचे की ओर तेजी से बहता है लेकिन ऊपर चढ़ाने के लिए प्रयास करना पड़ता है l गीता पढ़कर उतने आत्मज्ञानी नहीं बने जितने कि दूषित साहित्य , अश्लील द्रश्य और अभिनय से प्रभावित होकर कामुक अनाचार अपनाने में प्रवृत हुए l कुकुरमुत्तों की फसल और मक्खी -मच्छरों का परिवार भी तेजी से बढ़ता है पर हाथी की वंश वृद्धि अत्यंत धीमी गति से होती है l
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