पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " समाज में छाये हुए अनाचार , असंतोष और दुष्प्रवृतियों का मात्र एक ही कारण है कि जन साधारण की आत्मचेतना मूर्च्छित हो गई है l समुद्र के बीच में खड़ा प्रकाश स्तम्भ बुझ जाये तो फिर उस क्षेत्र में चलने वाले जलयान चट्टान से टकराकर दुर्घटना ग्रस्त होंगे ही l " आचार्य न्श्री लिखते हैं ----- ' धूर्तता के बल पर आज कितने ही अपराधी प्रवृति के लोग क़ानूनी दण्ड से बच निकलने में सफल हो जाते हैं l लेकिन असत्य का आवरण अंतत: फटता ही है l जनमानस में व्याप्त घ्रणा का सूक्ष्म प्रभाव उस मनुष्य पर अद्रश्य रूप से पड़ता है l जिसकी आत्मा धिक्कारेगी उसके लिए देर -सबेर सभी कोई धिक्कारने वाले बन जायेंगे l ऐसी धिक्कार एकत्रित कर के यदि मनुष्य जीवित भी रहा तो उसका जीवन न जीने के बराबर है l विपुल साधन -संपन्न होते हुए भी व्यक्ति इसी कारण सुख शांति पूर्वक नहीं रह पाते क्योंकि उन उपलब्धियों के मूल में छुपी अनैतिकता व्यक्ति की चेतना को विक्षुब्ध किए रहती है l '
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