2 September 2022

WISDOM -----

 हमारे  देश  में  ऊँच -नीच , छुआछूत   और  जाति -प्रथा  सदियों  से  है  l  इन  कमियों  की  वजह  से  ही  देश  को  सदियों  की  गुलामी  झेलनी  पड़ी  l   इतनी  भौतिक  प्रगति  के  बावजूद  ये  बुराइयाँ  कम  नहीं  हुई  l  कहते  हैं  जहर  ही  जहर  को  मारता  है  l  इन  सामाजिक  बुराइयों  में  जो  दोहरा  मापदंड  है  यदि  वो  समाज  के  सामने  आ  जाये  तो  ये  बुराइयाँ  स्वत:  ही  समाप्त  हो  जाएँगी  जैसे  --शिक्षा  के क्षेत्र  में  , नौकरी  आदि  में  सभी  को  अपनी  जाति  प्रमाण पत्र  से   स्पष्ट  करनी  पड़ती  है  l  इसी  तरह  दलित  जाति  की  कन्याओं , युवतियों  के  साथ  जो  भी  अपराध  होते  हैं  , उन  अपराध  करने  वालों  का  जाति -प्रमाण पत्र  सबके  सामने  आ  जाये  तो  ये  दोहरा  मापदंड  स्पष्ट  हो  जायेगा  l  बड़े -बड़े  अपराध , भ्रष्टाचार  करने  के  लिए  समाज  के  सभ्रांत  कहे  जाने  वाले  लोग  ,   कमजोर  वर्ग    को    ही   माध्यम  बनाते  हैं    l  जहाँ  अपना  स्वार्थ  है  वहां  छुआछूत  नहीं  है  l    इस  बुराई  को  दूर  करने  के  लिए  अनेक  महान  पुरुषों , संतों  आदि  ने  बहुत  प्रयास  किए  ----- संत  एकनाथ जी  के  जीवन  का  प्रसंग  है  -- संत  एकनाथ  जाति प्रथा  के  भेदभाव  को  बिलकुल  भी  नहीं  मानते  थे  l  उच्च  कुल  और  ब्राह्मण  जाति  का  होते  हुए  भी  उन्होंने  कभी  किसी  के  साथ  अभद्र  व्यवहार  नहीं  किया  l  एक  बार  उनके  घर  में  पूर्वजों  का  श्राद्ध  था  l  उनकी  पत्नी  ब्राह्मण  भोज  के  लिए  पकवान  बना  रही  थीं  l  उसी  समय  कुछ  वंचित  जाति  के  व्यक्ति  उनके  घर  के  पास  से  गुजरे  और  पकवानों  की  खुशबू  पाकर  कहने  लगे  कि  हम  लोगों  के  ऐसे  भाग्य  कहाँ  हैं  कि  ऐसे  पकवानों  का  सेवन  कर  सकें  l  संयोग  से  उनकी  यह  बात  एकनाथ जी  के  कानों  में  पड़  गई   l  उन्होंने  बिना  एक  पल  देरी  किए   उन  लोगों  को  अपने  घर  बुलाकर  अच्छी  तरह  भोजन  करा  दिया  l  फिर  रसोई  घर  और  बरतनों  को  अच्छी  तरह  साफ  कर  के   ब्राह्मणों  के  लिए  दोबारा  भोजन  बनाया  l  जब  ब्राह्मणों  को  इस  बात  का  पता  चला  कि  एकनाथ  ने  उनके  लिए  बनाया  गया  भोजन   उस  वर्ग  के  लोगों  को  खिला  दिया   और  अब  उनके  लिए  दोबारा  भोजन  बनाया  गया  है   तो  वे  ब्राह्मण  बहुत  नाराज  हुए  और  भोजन  करने  से  इनकार  कर  दिया  और  बार -बार  आग्रह  करने  पर  भी  भोजन  करने  को  तैयार  नहीं  हुए   तो  संत  एकनाथ  ने  अपने  पितरों  का  आवाहन  किया  l  ऐसा  कहते  हैं  कि  पितरों  ने  सशरीर  वहां  उपस्थित  होकर  उनका  दिया  भोजन  ग्रहण  किया  l  एकनाथ  सच्चे  संत  थे  ,  उन्होंने  शास्त्रों  का  अध्ययन  करके  उसके  मर्म  को  अपने  जीवन  में  आत्मसात  किया  l  उनका  जीवन  समाज  के  लिए  प्रेरणा  है  l  

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