पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- 'इस समय का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि इस समय सभी वर्णों ने अपनी -अपनी गरिमा को भुला दिया है l इस समय केवल एक ही वर्ण रह गया है वह है ---व्यापारी l डॉक्टर , इंजीनियर , कलाकार , शिक्षक , पंडित ,क्षत्रिय , वैश्य आदि सभी अपना कर्तव्य भूलकर केवल धन के पीछे लगे हैं l सारा व्यवहार पैसे के लिए ही चल रहा है l ' वर्तमान की स्थिति इतनी विकट है कि अमीरी की भी दौड़ है l कौन सबसे आगे है ? यह भी सत्य है कि केवल ईमानदारी और सच्चाई से बहुत अमीर नहीं हुआ जा सकता l मेहनत तो करनी पड़ती है लेकिन वह अधिकांशत: दंद -फंद और हेरा -फेरी जैसी नकारात्मक दिशा में ज्यादा होती है l ऐसी दौड़ का कोई सकारात्मक परिणाम भी नहीं होता ---- एक कथा है ---- एक सेठ जी थे , अथाह धन -सम्पदा थी l दिन -रात भागा -दौड़ी करते , खाने -पीने का भी कोई होश नहीं l उनके घर में एक नौकर सेठ जी को देखकर सदा यही सोचा करता कि ये बेचारे सेठ किसके लिए इतनी मेहनत कर रहे हैं , इतना धन किसके लिए जोड़ रहे हैं ? एक कन्या है उसका विवाह हो ही गया l अब वो नौकर था , उसे सेठ को समझाने की हिम्मत नहीं थी l विधि का विधान देखिए , एक दिन सेठ को अचानक हार्ट अटैक आया और वे परलोक सिधार गए l सेठ की खूबसूरत पत्नी ने उस नौकर से विवाह कर लिया l उसे अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया ,कि वो बेचारा सेठ उसी के लिए दिन -रात एक किए था l
एक और कथा है --- व्यक्ति चाहे इस लोक में हो या उस लोक में , धन का लालच ऐसा है जो कभी जाता नहीं l --- एक सेठ जी की मृत्यु हो गई l जीवन में कुछ दान -पुण्य भी किया था , कुछ पापकर्म , शोषण आदि भी किया था l जब धर्मराज के यहाँ हिसाब -किताब हुआ तो धर्मराज ने कहा ---" सेठ जी ! आपके लिए कुछ दिन का स्वर्ग है , कुछ दिन का नरक l आप पहले कहाँ जाना पसंद करेंगे ? सेठ जी ने कहा --- " महाराज ! चाहे स्वर्ग हो या नरक मुझे तो वहां भेज दो , जहाँ चार पैसे की आमदनी हो l " इस समय का सत्य यही है कि धन प्राथमिकता है उसके बदले चाहे बीमारी , तनाव , अनिद्रा कुछ भी हो l
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