पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' जीवन एक अनंत प्रवाह है l मनुष्य माया -मोह में फंसकर कर्म करता रहता है , इस कारण जीवन का आवागमन का कर्म चलता रहता है l मनुष्य कर्मानुसार एक -दूसरे का कर्ज ही देने आता है l केवल मनुष्य रूप में ही नहीं , पशु -पक्षी बनकर भी कर्ज चुकाना पड़ता है l एक कथा है ---- एक सेठ जब धन उधार देता था तो यह लिखवा लेता था कि यदि इस जन्म में कर्ज न चुका सके तो अगले जन्म में चुका देंगे l चार चोरों ने सोचा अगला जन्म किसने देखा है ? चलो रुपया उधार लेकर कुछ दिन मौज -मस्ती करेंगे l यह सोचकर सेठ के पास गए l सेठ ने रूपये दे दिए और अगले जन्म में चुका देने वाले प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर करा लिए l चोरों ने रात को वहीँ रुकने का निश्चय किया , सेठ ने उन्हें अपने बाहर के कमरे में रुकने की व्यवस्था कर दी l कमरे के निकट ही गाय और बैल बंधे थे l एक चोर जानवरों की बोली समझता था l रात में उसने सुना , गाय कह रही थी ---" भैया , मेरा कर्ज तो सुबह समाप्त हो जायेगा , कल दूध देकर मेरी मुक्ति हो जाएगी l " बैल ने कहा --- " बहन , मुझ पर तो अभी बहुत कर्ज बाकी है l पता नहीं कब छुटकारा मिलेगा ? " चोर सुबह तक रुक गए l सुबह उन्होंने देखा कि दूध देने के बाद गाय मर गई l चोर डर गए , सेठ के पास जाकर यह कहकर धन वापस कर दिया कि हम अगले जन्म के लिए कर्जदार नहीं बनना चाहते l उन्होंने ईमानदारी से जीवन जीने का निश्चय किया l ----- कलियुग में दुर्बुद्धि का फेर है , लोग अगले जन्म का सोचते नहीं , करोड़ों कर्ज लेकर भाग जाते हैं , यदि हम अपने धर्म ग्रंथों पर , ऋषियों की वाणी पर विश्वास करते हैं तो इतने कर्ज को कितने जन्मों में , किस तरह चुकाएंगे , यह सारा हिसाब -किताब करना धर्मराज के लिए भी बहुत कठिन कार्य है l
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