5 October 2022

WISDOM -----

 प्रकृति  हमें  हर  पल  संकेत  देती  है  ,  लेकिन  मनुष्य  उसे  समझता  नहीं  है   या  अपने  विकारों  में  इस  तरह  बंधा  हुआ  है  कि  समझते  हुए  भी  नासमझी  करता  है  l  हमारे  देश  में    विजयदशमी  पर  रावण  जलाया  जाता  है  , प्रतिवर्ष  यह  रावण  और  बड़ा  होता  जाता  है  l  धार्मिक  आस्था  भी  है  ,  रोजगार  की  द्रष्टि  से   भी  पटाखे , मेला  आदि  से  लोगों  को  कुछ  न  कुछ  आमदनी  हो  जाती  है  , त्योहार  के  बहाने  लोग  खुशियाँ  भी  मना  लेते  हैं  l  इन  सब  बातों  से  अलग  हटकर  प्रकृति  के  खेल  निराले  हैं  l   यदि  विजयदशमी  के  दिन  बहुत  तेज  पानी  बरस  जाए  तो  असुरता  को  छिपाने  के  बहुत  तरीके  हैं  l  रावण , कुम्भकरण , मेघनाद  सभी  पुतले  रूपी  असुरों  को  छिपा  लिया  जाता  है  ,  इसी  में  प्रकृति  का  सन्देश  छिपा  है  कि  अपने  ऊपर  अच्छाई  का  आवरण  डालकर  अपने  भीतर  बैठी  कामना , वासना , तृष्णा , छल , कपट , षड्यंत्र , लोभ , लालच  , अति  महत्वाकांक्षा   जैसी  दुष्प्रवृतियों  को  मत  छिपाओ , ये  दुष्प्रवृत्तियाँ   व्यक्ति  को  जीता -जगता  रावण  बना  देती  हैं  ,  इनसे  सारा  संसार  त्रस्त  है  l  जैसे  सद्गुण  वंशानुगत  हैं , अभिमन्यु  ने  गर्भ  में  ही  चक्रव्यूह   सीख    लिया  वैसे  ही  ये  बुराइयां, दुष्प्रवृत्तियाँ    भी  वंशानुगत  है  , पीढ़ी -दर -पीढ़ी  चलती  रहती  हैं  और   सन्मार्ग  दिखाने  वाला  कोई  न  हो  तो  बढती  जाती  हैं    रावण  ने  असुरों  का  ही  साम्राज्य  खड़ा  किया  , एक  लाख पूत , सवा  लाख  नाती  सब  असुर  थे  l  इसलिए  प्रकृति  हमें  सिखाती  है  कि  अपने  भीतर  की  असुरता  को  मिटाओ  l  प्रकृति  में  क्षमा  का  प्रावधान  नहीं  है  ,  उसके  क्रोध  से  कोई  बच  नहीं  सकता  l  

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