1. वटवृक्ष की पूजा होते देख रेगिस्तान को क्रोध आया l पूजा करते लोगों को लताड़ कर बोला --- " मूर्खों ! एक पेड़ की क्या पूजा करते हो ? मुझे देखो ! मेरा विस्तार मीलों तक है , उसमें एक नहीं अनेकों पेड़ समा जाएंगे l " ऊपर फैले हुए आसमान ने रेगिस्तान को टोक कर बोला --- " अभिनन्दन विस्तार का नहीं , विशालता का होता है l वटवृक्ष तुमसे विस्तार में छोटा ही सही , पर अपने ह्रदय की विशालता के कारण सैकड़ों को जीवन और आश्रय प्रदान करता है l ये पूजा उसी सह्रदयता की हो रही है l " रेगिस्तान का मुंह लज्जा से नीचे झुक गया l
2 . दक्षिणेश्वर में माँ काली की पूजा का आयोजन हुआ l दूर -दूर से लोग आए l पूजा के बाद भोग का वितरण हुआ l जब सब श्रद्धालु अपने -अपने घरों को लौट गए , तब स्वामी रामकृष्ण परमहंस उठे और लोगों की झूठी पत्तलों को उठा -उठाकर फेंकने लगे l यह देखकर मंदिर का पुजारी दौड़ा आया और उनसे बोला ---- " हे भगवन ! ये आप कैसा पाप चढ़वाते हैं ? यह सब काम करने के लिए तो मजदूर भी हैं l " रामकृष्ण परमहंस बोले ---- " मैं केवल पत्तलों को नहीं फेंक रहा l मैं तो अपने अहंकार को भी उठाकर फेंक रहा हूँ l भगवान की तरफ जाने वाली सीढ़ियाँ विनम्रता के ही रास्ते से जाती हैं l जो विनम्रता की और निरहंकारिता की साधना कर लेते हैं , माँ काली उन्ही के ह्रदय में वास करती हैं l "
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