एक नदी किनारे शिव मंदिर था l वहीँ पास के घाट पर धोबियों का पत्थर भी पड़ा था , जिस पर धोबी अपने कपड़े पटककर धोते थे l मंदिर में प्रतिष्ठित शिवलिंग और धोबी का पत्थर , हजार वर्ष पहले एक ही थे l नदी के जल के बहाव ने दोनों को अलग -अलग कर दिया और काल क्रम ने एक को शिवलिंग और दूसरे को धोबी का पत्थर बना दिया l धोबी का पत्थर आत्महीनता का अनुभव कर दुःखी रहता था l शिवलिंग को उसकी आत्मव्यथा का बोध था l वह उससे बोला ---- " मित्र ! तुम्हारा दुःख निरर्थक है l यह ठीक है कि मैं अपने समीप आने वालों को शांति प्रदान करता हूँ , किन्तु तुम तो निर्विकार भाव से हर किसी का मैल धोते हो l तुम्हारी साधना मुझसे कहीं बढ़कर है l सत्य तो यह है कि मेरे पास आने की प्रथम कसौटी तुम्ही हो l " शिवलिंग के ये मधुर वचन सुनकर धोबी घाट का पत्थर गदगद हो उठा , उसे अपना महत्त्व समझ में आया और आत्महीनता दूर हुई l
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