26 December 2022

WISDOM

   लघु -कथा --- युवराज  भद्र्बाहू   अत्यंत  सुन्दर  थे  , उन्हें  इस  सुन्दरता  का  अभिमान  भी  था  l  एक  बार  वे  मंत्री पुत्र  सुकेश  के  साथ  भ्रमण  पर  निकले  l  एक  स्थान  पर  शवदाह  हो  रहा  था  l   राजकुमार  ने  पूछा --- " यह  क्या  हो  रहा  है  ? " सुकेश  ने  कहा --- " यहाँ  मृत  व्यक्ति  का  डाह संस्कार  हो  रहा  है  l " राजकुमार  ने  कहा --- " अवश्य  ही  वह  कुरूप  होगा  l "   सुकेश  ने  कहा --- 'नहीं , मरने  पर  पोरात्येक  व्यक्ति  का  शरीर  सड़ने -गलने  लगता  है  , इसलिए  उसे  जला  देना  पड़ता  है  l '  यह  सुनकर  भद्रबाहु  का  सुन्दरता  का  दर्प  चूर -चूर  हो  गया   और  वह  उदास  रहने  लगे  l  राजा  और  राजगुरु  ने  उनकी  उदासी  दूर  करने  की  बहुत  कोशिश  की  किन्तु  कोई  सफलता   हाथ  न  लगी  l  राजगुरु  युवराज  को  महा आचार्य  के  पास  ले  गए   ल  महाचार्य  ने  युवराज  से  कहा --- " तुम  इस  शरीर  के  अंतिम  परिणाम  की  चिंता  से  व्यथित  हो  ?   आज  तुम  जिस  भवन  के  स्वामी  हो   उसके  जीर्ण  होने  पर  तुम  अन्यत्र   निवास  करोगे  l  यही  नियम  शरीर  पर  भी   लागू    होता  है  l   यदि  यह  शरीर  जीर्ण  हो  जाये  तो  इसमें  रहने  वाली  आत्मा  शरीर  त्याग  देती  है   और  तब  इस  शरीर  को  नष्ट  कर  दिया  जाता  है  l  आत्मा  के  विकास  हेतु  यह  शरीर  उपकरण  मात्र  है   उसके  लिए  चिंतित  न  हो  l  श्रेष्ठ  और  शुभ  कर्मों  से  जीवन  को  सार्थक  करो  l  " 

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