' मृत्यु अटल सत्य है ' लेकिन संसार का प्रत्येक प्राणी चाहे वह पशु -पक्षी हो , कीट -पतंगे हो , जल , थल और नभ में रहने वाला कोई भी प्राणी हो सबको अपने शरीर से बहुत मोह होता है , कोई मरना नहीं चाहता l मनुष्य तो एक बुद्धिमान प्राणी है , वह चाहे कितना भी बीमार हो , गरीब हो , शरीर सूख गया हो लेकिन कोई मरना नहीं चाहता , सब जीना चाहते हैं l संसार में आकर्षण बहुत है और ' मोह ' है अपने से और अपनों से l पुराण की एक कथा है ----- महाराज प्रद्युम्न का रोग बहुत बढ़ गया , उनका अंत निकट आ गया , सभी वैद्य निराश होकर अपने घर लौट गए l राज परिवार बहुत परेशान था , कैसे भी हो राजा को बचाया जाये l प्रधान सचिव ने परामर्श कर आचार्य पुरन्ध्र को बुलवाया l आचार्य ने महाराज का पूर्ण परिक्षण किया और कहा कि अब उनमे जीवन के कोई लक्ष्ण शेष नहीं हैं l लेकिन राज परिवार हठ करने लगा कि आप तो सिद्ध पुरुष हैं , कैसे भी महाराज को बचाइए ! आचार्य ने बहुत समझाया कि आज बच भी गए तो यह जर्जर शरीर कब तक चलेगा , एक दिन तो जाना ही है l फिर यह शरीर छूता तो एक नया शरीर मिलेगा l आचार्य के उपदेश को किसी ने नहीं सुना , समझा ! तब आचार्य ने कहा --- हाँ , एक उपाय है , प्रधान सचिव , आप प्रयत्न करें तो महाराज के प्राण अभी बच सकते हैं l ' उन्होंने कहा --- आगया दें , हम महाराज के लिए सब कुछ करने को तैयार हैं l ' तब आचार्य ने कहा ---- " महाराज को अभी मर जाने दो l थोड़ी देर में ही राजोद्यान में आम का एक वृक्ष है , ये उसमे काष्ठ -कीट के रूप में जन्म लेंगे l आप उसे जा कर मार देना तो महाराज पुन: जीवित हो उठेंगे l " सब लोग बहुत प्रसन्न हुए और आचार्य के गुण गाने लगे l इस बीच महाराज को प्राणांत हो गया l शव को ढककर प्रधान सचिव राजोद्यान पहुंचे l थोड़ी ही देर में आचार्य ने जैसा बताया था वैसा ही एक कष्ट कीड़ा दिखाई दिया , प्रधान सचिव उसे पकड़ने के लिए पेड़ पर चढ़े l लेकिन कीड़ा अपनी जान बचाने के लिए एक डाल से दूसरी पर जाता रहा और फिर इस पेड़ से दुसरे पेड़ पर छलांग लगा ली l प्रधान ने बहुत पीछा किया लेकिन पकड़ न सके , निराश हो गए l आचार्य ने कहा --- कीड़े को अपने शरीर से इतना मोह है कि वह इसे त्यागकर राजा बनना नहीं चाहता l आचार्य ने अपनी दिव्य शक्ति से उसके मन की बात पता की और कहा कि यह कीड़ा अपने शरीर में प्रसन्न है , उसे इससे मोह है , उसे अपने कीट समुदाय में भी सब सुख हैं , भोग विलास सब है , वह इसे त्यागना नहीं चाहता इसलिए जान बचाने के लिए भाग रहा है l आचार्य ने कहा --इसी तरह हम भी एक अच्छे और नए जीवन के लिए भी डरते हैं , शरीर को त्यागना नहीं चाहते है l आचार्य की बात सुनकर सबका मोह टूटा और मृत्यु को अटल मानकर वे दाह -संस्कार की तैयारी में जुट गए l
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