लघु -कथा --- एक गधा पीठ पर अनाज की भारी बोरी लादे चल रेः था l देवर्षि नारद वहां से निकले तो उन्होंने गधे के निकट से गुजर रही एक चींटी को झुककर प्रणाम किया l गधे को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ l उसने अपनी जिज्ञासा नारद जी के सामने रखी देवर्षि बोले --- ' वत्स ये चींटी बड़ी कर्मयोगी मही , निष्ठां पूर्वक अपना कार्य करती है l देखो कितनी बड़ी चीनी की डली लिए जा रही है , इसलिए मैंने इसकी निष्ठां को नमन किया l " गधा क्रोधित हुआ और बोला --- प्रभु ! यह अन्याय है , इससे ज्यादा बोझ तो मैंने उठा रखा है तो मुझे बड़ा कर्मयोगी कहलाना चाहिए l ' देव ऋषि बोले --- ' पुत्र ! कार्य को भार समझकर करने वाला कर्मयोगी नहीं कहलाता l कर्मयोगी वो कहलाता है जो कार्य को अपना दायित्व समझकर प्रसन्नता पूर्वक उसे निभाता है l गधे की समझ में कर्मयोग का मर्म आ गया l
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