पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' मानव जीवन काल और कर्म का संयोग है l हम सब को जो जीवन मिला है , वह काल का सुनिश्चित खंड है l इसी काल खंड में हमें कर्म करने हैं और भोगने हैं l काल का जो वर्तमान खंड है उसमें हम कर्म करने के लिए स्वतंत्र हैं l इस अवधि में हम जो भी कर्म करते हैं उनका प्रभाव केवल वर्तमान काल तक ही सीमित नहीं रहता , वे हमारे भूतकाल और भविष्य को भी प्रभावित करते हैं l यदि भूतकाल में हमसे कुछ गलतियाँ हो गईं , कुछ अपराध हो गए तो वर्तमान के शुभ कर्मों से उनका प्रायश्चित और परिमार्जन किया जा सकता है l और हमारे वर्तमान के ये शुभ कर्म हमारे उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करने में भी समर्थ हैं l ' आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- जो जीवन के इस सच से सुपरिचित हैं , वे जीवन के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करते हैं और शुभ कर्मों के संपादन में संलग्न रहते हैं लेकिन जो अशुभ कर्मों की डगर पर चल पड़ता है , उसके लिए आदिशक्ति के महाकाली स्वरुप में विनाश प्रकट हो जाता है l " दुर्योधन आदि कौरवों ने सारा जीवन छल , कपट , षड्यंत्र किया , वे फरेबी , झूठे व अहंकारी थे l उनके जीवन का उदेश्य अपने को स्थापित करना और दूसरों को परेशान करना था l वे घोर अधर्मी थे इसलिए महाभारत के युद्ध में महा पराक्रमी भीष्म , द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महारथी भी दुर्योधन को विनाश की नियति से उबार नहीं सके , कौरव वंश का अंत हो गया l इसलिए हमें इस सत्य को स्वीकार करना चाहिए कि हमारे मन के तार ईश्वर से जुड़े हैं , हमारे हर कर्म पर उनकी नजर है l ईश्वर केवल हमारे कर्मों को ही नहीं जानते बल्कि हमारे मन में क्या चल रहा है , हमारी भावना क्या है , हम क्या सोच रहे हैं , इन सब की हर पल की खबर ईश्वर को है l
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