प्रचेता एक ऋषि के पुत्र थे और स्वयं भी बड़े तपस्वी थे l लेकिन वे बहुत क्रोधी थे , अपने क्रोध पर उनका नियंत्रण न था , अपनी इस दुर्बलता के आगे विवश थे l एक बार वे एक बहुत संकरे रास्ते से गुजर रहे थे , उसी समय दूसरी ओर से कल्याणपाद नाम का एक व्यक्ति आ गया l दोनों एक दूसरे के सामने थे l पथ संकरा होने के कारण एक के राह छोड़े बिना , दूसरा जा नहीं सकता था , लेकिन कोई भी राह छोड़ने को तैयार नहीं था l दोनों ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया , कोई भी झुकने को तैयार न था l प्रचेता ऋषि को क्रोध आ गया , वे तपस्वी तो थे ही , लेकिन क्रोध के कारण बिना परिणाम सोचे उन्होंने कल्याणपाद को श्राप दे दिया कि वह राक्षस हो जाये l तप के प्रभाव से कल्याणपाद राक्षस बन गया और प्रचेता को ही खा गया l
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