विधाता ने स्रष्टि की रचना की l समस्त प्राणियों में केवल मनुष्य के पास ही वह शक्ति है कि वह स्वयं का परिष्कार कर के चेतना के उच्च शिखरों तक पहुँच सकता है लेकिन लोभ , लालच , ईर्ष्या , द्वेष , कामना , वासना , स्वार्थ , महत्वाकांक्षा की जंजीरों में बंधा मनुष्य बहुत विवश है ! रावण महा ज्ञानी , विद्वान् , तपस्वी , परम शिव भक्त था , उसके पास तो सोने की लंका थी लेकिन सीता जी को पाने के लिए ' बेचारा ' हाथ में कटोरा लेकर भिखारी बन गया और वह भी वेश बदलकर , छुपते -छुपाते कोई देख न ले l दुर्योधन हस्तिनापुर का युवराज था , कोई कमी नहीं थी लेकिन ईर्ष्यालु था , पांडवों का सुख नहीं देख सकता था लेकिन महत्वाकांक्षा इतनी कि जब सब कौरव युद्ध में मारे जा चुके , वह अकेला बचा तब वस्त्रहीन होकर अपनी माँ के सामने जा रहा था ताकि माता गांधारी के तप का एक अंश उसे मिल जाए और उसका शरीर वज्र का हो जाये l इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण हैं l संसार ने अनेकों युद्ध , प्राकृतिक आपदाएं , उतार -चढाव सब देखा , लेकिन शांति से जीना नहीं सीखा l ईश्वर ने मनुष्य को चयन की स्वतंत्रता दी है , मनुष्य को स्वयं निर्णय लेना है कि उसे असुर बनना है या चेतना का परिष्कार कर देव मानव बनने की ओर अग्रसर होना है l
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