लघु -कथा ---- लोभ और अहंकार ने एक बार मिलजुलकर ठाना कि कुछ ही समय में सारे संसार की विचारशीलता को अपने कब्जे में कर लेंगे और एकछत्र राज्य करेंगे l चक्रवर्ती बन्ने का जुनून था लेकिन जल्दी सफलता नहीं मिल रही थी अत: उन्होंने एक शक्तिशाली देवता को सिद्ध करने के लिए साधना शुरू की l उनकी इच्छा थी कि देवता उन्हें ऐसी बुद्धि दें जिससे उनका मनोरथ पूर्ण हो जाए l उनकी कठिन साधना से प्रभावित होकर देवता जाग गए और उन दोनों साधकों से उनका मनोरथ पूछा l उन्होंने बड़ी नम्रता से अपनी इच्छा बताई तो देवता हँसने लगे और कहा ---- तुमसे पहचानने में भूल हो गई l मेरा नाम विवेक है , मैं विवेक दे सकता हूँ लेकिन मेरे जग पड़ने पर लोभ और अहंकार - तुम दोनों का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा l अब दोनों बहुत घबराए और कहने लगे -- देवता , आप फिर से गहरी नींद सो जाइये , हमें यह वरदान नहीं चाहिए l हम अपने ही बलबूते पर देर -सवेर अपना मनोरथ पूर्ण कर लेंगे l ` देवता ने उन्हें बहुत समझाया कि लोभी , अहंकारी को दैवी विधान के नियमानुसार फल मिलता है , लेकिन वे नहीं माने l देवता अपने नियम से बंधे थे l जैसे धनुष पर बाण चढ़ा लिया जाता है तो उसका संधान करना ही पड़ता है , इसलिए देवता ने अपनी दिव्य द्रष्टि से देखकर संसार में जो सत्पात्र थे उन्हें विवेक दिया ताकि वे लोगों को सन्मार्ग दिखा सकें , जागरूक कर सकें l
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