पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --' मनुष्य जीवन की एक ख़ास विशेषता है --उसके द्वारा किए जाने वाले कर्म l अपने शुभ कर्मों के माध्यम से मनुष्य न केवल इस संसार में सुखी , संतुष्ट , शांतिपूर्ण जीवन जीता है , बल्कि अपना आंतरिक विकास कर के चेतना के उच्च शिखरों का भी स्पर्श करता है l यदि मनुष्य का मन शुभ कर्मों की ओर नहीं है , बुराई का साथ देता है तो अशुभ कर्मों का परिणाम है --- जीवन का अंधकार से घिर जाना , जिसमें कुछ भी समझ नहीं आता , कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता , एक अजब सी बेचैनी , घबराहट मन में बनी रहती है जो उसे सतत परेशान करती है l l चयन मनुष्य को ही करना पड़ता है कि वह किस राह पर चले , शुभ कर्मों की राह पर या अशुभ कर्मों की राह पर l ' आचार्य श्री लिखते हैं ---कर्म करने के लिए व्यक्ति स्वतंत्र है , वह जो चाहे कर सकता है , लेकिन उसके परिणाम से वह बच नहीं सकता l ' वे आगे लिखते हैं ---- 'पतन एक सहज गतिक्रम है , उठाना पराक्रम है l अचेतन की पाशविक प्रवृतियां बार -बार मनुष्य को घसीटकर विषयी बनने की ओर प्रवृत्त करती हैं l यह मनुष्य पर निर्भर है कि वह इन पर किस प्रकार अंकुश लगा पाता है व प्राप्त सामर्थ्य का सदुपयोग कर पाता है l -------- रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे --- दो प्रकार की मक्खियाँ होती हैं l एक तो शहद की मक्खियाँ जो शहद के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं खातीं और दूसरी साधारण मक्खियाँ , जो शहद पर भी बैठती हैं और यदि सड़ता हुआ घाव दिखाई दे , तो तुरंत शहद को छोड़कर उस पर भी जा बैठती हैं l इसी प्रकार दो तरह के स्वभाव के लोग होते हैं l एक जो ईश्वर में अनुराग रखते हैं , वे ईश्वर चर्चा के सिवाय कोई दूसरी बात करते ही नहीं l और दूसरे , जो संसार में आसक्त हैं , वे ईश्वर की बात सुनते -सुनते यदि किसी स्थान पर विषय की बातें होती हों तो , वे तुरंत भगवान की चर्चा छोड़कर उसी में संलग्न हो जाते हैं l
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