श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान ने आसुरी प्रवृत्ति के लोगों के लक्षणों की चर्चा करते हुए कहते हैं की आसुरी प्रवृत्ति वाले व्यक्ति अहंकारी , कामी और क्रोधी होते हैं , वे स्वयं को ईश्वर समझते हैं इसलिए उनका प्रकृति के कर्मफल विधान में जरा भी भरोसा नहीं होता जैसे हिरण्यकशिपु स्वयं को नारायण समझने लगा था l आसुरी वृत्ति को मनुष्य की चेतना विध्वंसक होती है , अपने सभी प्रतिस्पर्धी उन्हें अपने दुश्मन नजर आते हैं , अहंकार से उन्मत्त होकर दूसरों का जीवन नष्ट करते हैं l l श्री भगवान कहते हैं --आसुरी प्रवृत्ति वाला व्यक्ति करता सब गलत है , उसकी चेतना कपट और आडम्बर करना ही जानती है , लेकिन अपने मन में वह यही मान कर बैठता है कि वो बिलकुल सही है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं -- जो लोग बुरे पथ पर चलते हैं , उनकी अंतरात्मा उन्हें कचोटती है तो वे कुतर्कों के द्वारा उसे भी धोखा देने और चुप कराने की कोशिश करते हैं l दान आदि शुभ कर्म भी उनकी अहंकार पूर्ति का माध्यम हैं l भगवान कहते है कि ऐसे लोग अपने जीवन को ही नरक बना लेते हैं l रावण , दुर्योधन , तैमूरलंग , सिकंदर ऐसे ही अहंकारी थे l
No comments:
Post a Comment