आंधी ने शीतल बयार से कहा --- " अरी बहन ! ये तुम क्या धीरे -धीरे बहती हो l मुझे देखो न, मैं जब आवेग के साथ चलती हूँ तो पेड़ -पौधे काँपते हैं , बड़े -बड़े भवन थरथराते हैं , सब अपने बचाव में इधर -उधर भागते हैं l जिन्दगी ऐसे जीनी चाहिए जिसका सब लोग लोहा माने और हमसे डरें l " शीतल बयार ने नम्रता से उत्तर दिया ---- " आँधी दीदी ! मुझे तो इस धीमी चाल में ही आनंद आता है l इसमें किसी को कष्ट नहीं होता और मैं जिसको छू कर जाती हूँ , उसके चेहरे पर एक शांति की रेखा छोडती हुई जाती हूँ l दूसरों के सुख में ही मेरे जीवन का सुख है l " आवेगपूर्ण जीवन आँधी की तरह स्वयं और दूसरों के कष्ट का कारण बनता है l
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