नगर सेठ अथाह धनराशि का स्वामी था l विपुल धन -वैभव के होते हुए भी उसके मन में तनिक भी शांति नहीं थी l कई रातें बीत जातीं , पर वह बिस्तर पर करवटें ही बदलता रहता और उसका मन बेचैन बना रहता l एक दिन वह अपने बिस्तर पर लेता हुआ था कि उसे एक मधुर आवाज सुनाई पड़ी , कोई व्यक्ति बाहर ईश्वर का भजन गा रहा था l उस संगीत को सुनकर सेठ का मन ऐसा शांत हुआ कि उसे नींद आ गई l अगले दिन उसने उस व्यक्ति को बुलाया , जो भजन गा रहा था l वह व्यक्ति नगर का मोची था , सेठ ने उसे एक स्वर्ण मुद्रा दी l स्वर्ण मुद्रा पाने के बाद उस व्यक्ति का भजन कई रातों तक सुनाई नहीं पड़ा l सेठ ने उसे बुलवाया तो पता चला कि उसने जीवन में पहली बार स्वर्ण मुद्रा देखी थी और उसे पाने के बाद उस की रक्षा में ऐसा व्यस्त हुआ कि उसकी स्वयं की नींद चली गई l यह सुनकर सेठ को भान हुआ कि वैभव की चाह एवं स्वार्थ ही सारी समस्याओं का मूल है l उसने अपनी धन -संपदा को परोपकार के कार्यों में उपयोग करने का निश्चय किया l ऐसा करने से उसके मन को शांति मिली l
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