पुराण में कथा है कि समुद्र मंथन में कालकूट विष निकला , शिवजी ने उसे अपने कंठ में धारण किया l उसे पीते समय उस विष की कुछ बुँदे मिटटी पर गिर गईं l वह वही मिटटी थी जिससे ब्रह्मा जी मनुष्यों की देह बनाया करते थे l उस विषैली मिटटी से बने शरीर में वही विष ईर्ष्या , द्वेष की आग बन कर सबका अहित करता है और यह आग पूरे वातावरण को जहरीला बना देती है l यह दुर्गुण ऐसा है जो सब में चाहे वह सामान्य व्यक्ति हो , राजा हो , अधिकारी हो या कोई ऋषि , तपस्वी हो सब में थोड़ी -बहुत मात्रा में पाया जाता है l इस कारण ही परिवार में , समाज में और पूरे संसार में अशांति है l पुराण में एक कथा है --- ऋषि वशिष्ठ और विश्वामित्र में द्वेष के कारण ऐसा शत्रुता का भाव उत्पन्न हो गया कि एक दूसरे को देखते ही अपशब्द कहने लगते थे l एक बार इंद्र के यज्ञ में जाने के लिए वशिष्ठ जी आश्रम से बाहर निकले कि उनका सामना विश्वामित्र से हो गया l अब दोनों एक दूसरे पर अपशब्दों की बौछार करने लगे l बात इतनी बढ़ गई कि वशिष्ठ ने विश्वामित्र को बगुला बन जाने का शाप दिया l विश्वामित्र ने भी उनको ' आडी ' नामक पक्षी बना दिया l दोनों ही सरोवर के तट पर घोंसला बनाकर रहने लगे लेकिन वे पुराना वैर भूले नहीं और नित्य प्रति युद्ध करने लगे l उनके बच्चे , सम्बन्धी भी युद्ध में शामिल हो गए l यह युद्ध बहुत वर्षों तक चला जिससे वह सरोवर और उसके आस -पास का रमणीक प्रदेश घ्रणित रूप में परिवर्तित हो गया l इस दुर्दशा को देख पितामह ब्रह्मा वहां पधारे और दोनों को शाप मुक्त कर के बहुत डांटा - फटकारा कि ज्ञानी , तपस्वी होकर तुम मूर्खों जैसा कार्य कर रहे हो तो फिर सामान्य जन की क्या कहें l
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