1 . जीवन के संघर्ष और आँधियों से दुःखी एक नाविक जहाज से उतारकर बाहर आया l समुद्र के मध्य अडिग और अविचलित चट्टान को देखकर उसे कुछ शांति मिली l वह वहां खड़ा होकर चारों ओर देखने लगा l उसने देखा समुद्र की तेज लहरें चारों ओर से उस चट्टान पर निरंतर आघात कर रही हैं l तो भी चट्टान के मन में न रोष है और न ही विद्वेष है l संघर्ष पूर्ण जीवन पाकर भी उसे कोई ऊब , कोई दुःख नहीं है l मरने की भी उसने कभी कोई इच्छा नहीं की l यह देखकर नाविक का ह्रदय श्रद्धा से भर गया l उसने चट्टान से पूछा == " तुम पर चारों ओर से आघात लग रहे हैं , फिर भी तुम निराश नहीं हो l " चट्टान बोली ---- " तात ! निराशा और मृत्यु दोनों एक ही वस्तु के दो पक्ष हैं l यदि हम निराश हो गए होते , तो एक क्षण ही सही दूर से आए अतिथियों को विश्राम देने , उनका स्वागत करने से वंचित रह जाते l " नाविक को एक प्रेरणा मिली ---- जीवन में कितने ही संघर्ष आयें , अब मैं चट्टान की तरह जिऊंगा ताकि भावी पीढ़ी और मानवता के आदर्शों की रक्षा हो सके l
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