1 . महात्मा रामानुजाचार्य अपनी शारीरिक दुर्बलता के कारण नदी स्नान करने जाते हुए लोगों का सहारा लेकर जाया करते थे l जाते समय वे ब्राह्मण के कन्धों का सहारा लेते और आते समय शूद्र के कन्धों पर हाथ रखकर आते l लोगों ने आश्चर्य पूर्वक पूछा ---- " भगवान ! शूद्र के स्पर्श से तो आप अपवित्र हो जाते हैं , फिर स्नान का महत्त्व क्या रहा ? " महात्मा ने कहा --- " स्नान से तो मेरी देह मात्र शुद्ध होती है l मन का मैल तो अहंकार है l जब तक मनुष्य में अहंकार शेष है , तब तक उसे मन का मलीन कहा जाता है l मैं शूद्र का स्पर्श कर के अपने मन की मलीनता स्वच्छ करता हूँ l मैं किसी से बड़ा नहीं, सब मुझसे म बड़े हैं , शूद्र भी मुझसे श्रेष्ठ हैं , इसी भावना को स्थिर रखने के लिए शूद्र का सहारा लिया करता हूँ l " उनका कहना था कि शरीर ही नहीं मन को भी पवित्र रखने की व्यवस्था करनी चाहिए l
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