एक दिन कबीर गंगा घाट पर गए हुए थे l उन्होंने एक ब्राह्मण को किनारे पर हाथ से अपने शरीर पर पानी डालकर स्नान करते हुए देखा तो अपना पीतल का लोटा देते हुए कहा --- " लीजिए , इस लोटे से आपको स्नान करने में सुविधा होगी l " लेकिन ब्राह्मण ने कबीर को गुस्से में घूरते हुए कहा -- " रहने दे l ब्राह्मण जुलाहे के लोटे से स्नान करने से भ्रष्ट हो जायेगा l " इस पर संत कबीर हँसते हुए बोले --- " लोटा तो पीतल का है , जुलाहे का नहीं l रही भ्रष्ट , अपवित्र होने की बात , तो मिटटी से साफ कर गंगा के पानी से इसे कई बार धोया है और यदि यह अभी भी अपवित्र है तो मेरे भाई , दुर्भावनाओं , विकारों से भरा मनुष्य क्या गंगा में नहाने से पवित्र हो जायेगा ? " कबीर के इस जवाब ने ब्राह्मण को निरुत्तर कर दिया l
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