पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----" इस समय का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि इस समय सभी वर्णों ने अपनी -अपनी गरिमा को भुला दिया है l इस समय केवल एक ही वर्ण रह गया है वह है ---व्यापारी l केवल एक ही बात सबके दिमाग में आती है कि पैसा कैसे कमाया जा सकता है ? डॉक्टर , इंजीनियर , कलाकार , शिक्षक , जन-प्रतिनिधि आदि सब अपना कर्तव्य भूलकर केवल धन के पीछे लगे हैं l आजकल सारा व्यवहार पैसे से ही चल रहा है l " ऐसी विचारधारा का सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ है कि व्यक्ति हो या राष्ट्र सब कर्ज में लद गए हैं और इस कर्ज ने , उधारी ने सबका सुख -चैन छीन लिया है l इसका कारण यही है कि व्यक्ति अध्यात्म से दूर है और भौतिक सुख -सुविधाओं के पीछे भाग रहा है और तृष्णा का कोई अंत नहीं है इसलिए समस्याओं का और तनाव का भी अंत नहीं है l आज व्यक्ति धार्मिक होने का ढोंग तो बहुत करता है लेकिन ईश्वर के बताए मार्ग पर नहीं चलता l श्री हनुमान जी का चरित्र हमें हमें प्रेरणा देता है ------ श्री हनुमान जी के संबंध में भगवान राम ने कहा था कि समाज के सभी वर्णों ---ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र चारों का रूप हनुमान जी में दिखाई देता है अर्थात हनुमान जी सभी के हैं l श्री हनुमान जी ने प्रभु श्रीराम से स्वयं यह जानना चाहा कि ' आपने मुझे ब्राह्मण भी कहा , क्षत्रिय भी कहा लेकिन वैश्य क्यों कहा ? आपको मुझमें ऐसे क्या वणिक गुण दिखाई पड़े ? " तब श्रीराम जी ने उनसे कहा --- " प्रिय हनुमान ! वैश्य दूसरों पर कर्जा चढ़ा देता है , तुमने मेरी इतनी सेवा कर दी है कि इसे चुकाना मेरे लिए आसान बात नहीं l " इसका अभिप्राय यही है कि अपनी असीमित इच्छाओं के कारण किसी व्यक्ति या राष्ट्र के ऋणी होकर , उनके आगे सिर झुका कर चलने से तो बेहतर है कि अपनी आवश्यकताओं को सीमित करे और सत्कर्म करे , सन्मार्ग पर चले ताकि दैवी शक्तियां भी हमें अनुदान देने को विवश हो जाएँ जैसे हनुमान जी ने निष्काम सेवा से भगवान को भी ऋणी बना दिया l
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