पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " नियत के अनुसार नियति होती है l नियति कर्मों का परिणाम होती है l जैसा हम सोचते हैं एवं करते हैं , वैसी ही हमारी नियति होती है l सतत सत्कर्म , सदाचरण एवं सद्भाव के द्वारा हमारी नियति श्रेष्ठता से परिपूर्ण हो जाती है l लेकिन इसके विपरीत स्थिति में नियति अत्यंत कष्टसाध्य बन जाती है l " महाभारत में पांडवों के साथ तो भगवान श्रीकृष्ण थे लेकिन कौरव सदा से षड्यंत्रकारी , फरेबी , झूठे व अहंकारी थे l उनके जीवन का उदेश्य दूसरों को तरह -तरह से परेशान करना और स्वयं को स्थापित करना था l पांडवों के साथ निरंतर छल -कपट और षड्यंत्र कर के , भरी सभा में अपनी ही कुलवधू महारानी द्रोपदी का अपमान कर के दुर्योधन ने स्वयं ही कौरव वंश के विनाश की नियति लिख ली थी l नियति के अनुरूप कौरव मिट गए और पांडवों को विजय प्राप्त हुई l अनीति और अत्याचार जो करता है , वह तो डूबता ही है , जो उसके साथ जुड़े होते हैं , वह उन सबको ले डूबता है l किसी भी जाति या धर्म में पैदा होना व्यक्ति के वश की बात नहीं है , लेकिन श्रेष्ठ कर्मों से , पवित्र भावनाओं से और छल -कपट रहित जीवन से हम अपनी श्रेष्ठ नियति का निर्माण कर सकते हैं l
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