पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " किसी को ईश्वर संपदा , विभूति अथवा सामर्थ्य देता है तो निश्चित रूप से उसके साथ कोई न कोई सद्प्रयोजन जुड़ा होता है l हमें यह देखना चाहिए कि उसका लाभ गलत व्यक्ति तो नहीं उठा रहे हैं l नहीं तो ये अच्छाइयाँ व्यर्थ चली जाएँगी l " श्री हनुमान जी के चरित्र से हमें यही सीख मिलती है कि सद्प्रयोजनों के लिए , अत्याचार व अन्याय के अंत के लिए जब अपनी शक्ति और विभूतियों का सदुपयोग किया जाता है , तब असंभव भी संभव हो जाता है l श्री हनुमान जी भगवान श्रीराम के प्रिय भक्त और उनके सबसे बड़े सेवक हैं l भगवान के कार्य को पूरा करना ही उनका लक्ष्य था l अत्याचारी , अन्यायी कितना भी शक्ति संपन्न क्यों न हो , उन्होंने उसका साथ नहीं दिया , उन्होंने बाली को छोड़कर सुग्रीव का साथ दिया l जब समुद्र को पार कर श्री हनुमान जी लंका पहुंचे , तो लंका के द्वार पर लंका की रक्षा करने वाली लंकिनी नामक राक्षसी मिली , उसने उन्हें रोकने का प्रयास किया l श्री हनुमान जी ने देखा कि यह लंकिनी अत्याचारी और अन्यायी रावण की सेवा में है , जिसने छल से माता सीता का हरण किया है , एक गलत व्यवस्था की रक्षा कर रही है इसलिए उस पर प्रहार करना चाहिए , तब उन्होंने मुक्का मारकर लंकिनी को घायल कर दिया l
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