सम्राट पुष्यमित्र के एक सेनापति पर महाभियोग लगा l आचार्य मार्तण्ड न्यायधीश बनाए गए l सेनापति स्वयं भारी धनराशि लेकर आचार्य मार्तण्ड के सामने उपस्थित हुआ और बोला ---- " महाशय , आप चाहें तो अशर्फियों की यह थैलियाँ लेकर अपनी दरिद्रता दूर कर सकते हैं l इन्हें रखिये और न्याय हमारे पक्ष में कीजिए l विश्वास रखें यह बात हम दोनों के अतिरिक्त और कोई नहीं जान पायेगा l आचार्य ने एक उपेक्षित द्रष्टि थैलियों पर डाली और हँसकर बोले ---- " वत्स ! धरती , आकाश , मेरी आत्मा , आपकी आत्मा और परमात्मा की जानकारी में जो बात आ गई , वह छुपी कहाँ रही l इन्हें ले जाइये , कर्तव्य और उत्तरदायित्व को प्रलोभन के बदले झुठलाना मेरे लिए संभव नहीं है l
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