कबीरदास जी कहते हैं ---- कबीर चन्दन पर जला , तीतर बैठा माहिं l हम तो दाझत पंख बिन l तुम दाझत हो काहि l कबीर कमाई आपनी , कबहुं न निष्फल जाय l सात सिंधु आड़ा पड़े , मिले अगाड़ी आय l अर्थात जलते हुए चंदन के पेड़ पर एक तीतर आकर बैठ गया और वह भी जलने लगा l पेड़ कहता है , हम तो इसलिए जल रहे हैं , क्योंकि हमारे पास पंख नहीं हैं , हम उड़ नहीं सकते l लेकिन तीतर तुम तो पंख वाले हो , फिर तुम क्यों जलते हो ? तीतर उत्तर देता है कि अपना किया हुआ कर्म बेकार नहीं जाता l सात समुद्र की आड़ में रहे तो भी आगे आकर मिलता है l --- पुराण की एक कथा है जो यह बताती है कि सत्कर्मों के फलस्वरूप व्यक्ति इंद्रासन भी प्राप्त कर सकता है लेकिन सफलता की ऊँचाइयों पर पहुंचकर यदि वह अपनी शक्ति का दुरूपयोग करता है , लोगों को अपमानित , उत्पीड़ित करता है तो वहां से नीचे गिरने में देर नहीं लगती l ----- नहुष को पुण्य फल के बदले इंद्रासन प्राप्त हुआ l ऐश्वर्य और सत्ता का मद जिन्हें न आवे , ऐसे विरले होते हैं l नहुष पर भी सत्ता का नशा चढ़ गया , उनकी द्रष्टि रूपवती इन्द्राणी पर पड़ी और उन्होंने इन्द्राणी को अंत:पुर में आने का प्रस्ताव भेजा l इन्द्राणी बहुत दुःखी हुई , उन्होंने देवगुरु ब्रहस्पति से इस मुसीबत से बचने का उपाय पूछा l उनकी सलाह के अनुसार इन्द्राणी ने नहुष के पास सन्देश भेजा कि यदि नहुष सप्त ऋषियों को पालकी में जुतवाए और उस पालकी में बैठकर मेरे पास आए तो मैं प्रस्ताव स्वीकार कर लूंगी l आतुर नहुष ने ऋषि पकड़ बुलाए , उन्हें पालकी में जोत दिया और उस पर चढ़ बैठा l नहुष इन्द्राणी के पास पहुँचने को बहुत आतुर था इसलिए ऋषियों को बार -बार हड़का रहा था ---' जल्दी चलो , जल्दी चलो l ' दुर्बल काया के ऋषि इतना भार दूर तक ढोने और जल्दी चलने में समर्थ नहीं थे l लेकिन नहुष उन्हें बार -बार जल्दी चलने को कह रहा था l अपमान और उत्पीड़न से क्षुब्ध हो एक ऋषि ने उसे शाप दे डाला --- '" दुष्ट ! तू स्वर्ग से पतित होकर पुन: धरती पर जा गिर l " शाप सार्थक हुआ और नहुष स्वर्ग से पतित हो कर मृत्युलोक में दीन -हीन की तरह विचरण करने लगे l
No comments:
Post a Comment