पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' इस संसार की सभी समस्याओं का एकमात्र हल ' संवेदना ' है और स्वार्थ इनसान को संवेदनहीन बना देता है l ' संवेदनहीन मनुष्य हिंसक पशु के समान है l भौतिक द्रष्टि से मानव समाज बहुत विकसित हो गया है लेकिन चेतना के स्तर पर वह आज भी पशु है l यदि मनुष्य और पशु की तुलना की जाए तो कई बातों में पशु श्रेष्ठ हैं --- पशु कभी किसी को धोखा नहीं देते , किसी के विरुद्ध छल , कपट षड्यंत्र नहीं रचते , किसी का शोषण , उत्पीड़न नहीं करते , स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए कभी किसी को अपमानित नहीं करते l यह सब इसलिए संभव है क्योंकि पशुओं के पास बुद्धि नहीं है l ईश्वर ने मनुष्यों को बुद्धि दी है , अपनी चेतना को विकसित करने के लिए उसके पास अनेक अवसर हैं लेकिन स्वार्थ , लोभ , लालच , कामना , वासना , महत्वाकांक्षा आदि दुष्प्रवृत्तियां इतनी प्रबल हैं की मनुष्य अपनी सारी बुद्धि इन बुराइयों के पोषण में ही लगा देता है और इससे भी बड़ी बात यह है कि इन दुष्प्रवृतियों को पोषण मिलता रहे , इसके लिए समान विचारों के लोग परस्पर सहयोग भी करते हैं l यही कारण है की सम्पूर्ण समाज का वातावरण दूषित हो जाता है l संसार में अच्छे लोग भी हैं लेकिन वे संगठित नहीं है जबकि असुरता बहुत मजबूती से संगठित है l समाज के नैतिक पतन का एक कारण यह भी है कि सभ्य समाज में व्यक्ति स्वयं को बहुत सभ्य , सेवाभावी और श्रेष्ठ व्यक्तित्व का दिखाना चाहता है लेकिन इसके पीछे का जो काला पक्ष है , वे उसे छुपाना चाहते हैं l लेकिन आसुरी प्रवृत्ति के व्यक्ति एक दूसरे के काले पक्ष को अच्छी तरह जानते हैं और इस सिद्धांत के अनुसार कि 'तुम हमारी न कहो , हम तुम्हारी न कहें ' परस्पर मजबूती से संगठित रहते हैं l इसी कारण समाज में इतनी अशांति , तनाव , लड़ाई , झगड़े , असंतोष है l
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